एहसास
भटकता रहा,
दर-बदर सहारे की तलाश में।
मिला अंजानो से अपनो की तलाश में।
मांगी थी, खुदा से हस्ते हुये चेहरे
ताकि वो मुझे हँसा सके,
मिली मगर सिर्फ रोते हुये ही चेहरे।
तब समझ मे आया,
मैं खुद ही सहारा हूँ, औरो का, मैं खुद ही वो हस्ता हुआ चेहरा हूँ जिस्से औरो के चेहरे पे हँसी है खुसी है।
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