माँ-पिताजी
थी नही जब हमारी साँसे, तब भी थे वो हमारे साथ।
हमारे जन्म से पहले जन्म के बाद भी।
छोड़ दिया खाना-पीना जो थे उन्हे लज़ीज, बदल दी आदतें जिनके बग़ैर उनका जीना था मुश्किल।
सिर्फ़ हमारे लिये सिर्फ हमारे लिए।
न पर्वाह की माँ ने दुनिया की कौन देख रहा है उनके अस्तनो को, पर्वाह थी तो सिर्फ हमारी, बच्चे को दूध पिलाना है। ढाक लिया अपने आँचलो से खुद को इसलिए नही की खुद को छिपाना है बल्कि इसलिये की बच्चे को दुनिया की बुरी नजरों से बचाना है।
पिताजी कि क्या बात करू मैं,
माँ ने तो रोकर मन हल्का कर लिया। पिता ने तो सारे जीवन भर के लिये ज़हर पी लिया। जिनका सर कभी झुका नही दुनिया के सामने अपने बच्चों के लिए तो अपने घुटनों को भी मोड लिया।
माँ -पिताजी ही अपने है बाद-बाकी तो सपने है।
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